६ फरवरी २०१७
मानव के शरीर में हर क्षण कुछ न कुछ घट रहा है. श्वास का आना-जाना कितना सहज है पर इसके पीछे का विज्ञान कितना जटिल है. इसी तरह इस विशाल प्रकृति में पल-पल कितना कुछ घट रहा है, इसे जानना सबके वश में नहीं है पर इन सबके साथ एक मैत्री भाव का अनुभव करना, इन्हें अपना जानना हर किसी के हाथ में है. जीवन तब सरल हो जाता है, जब सारा संसार अपना घर लगता है, पर ऐसी स्थिति तक पहुंचने के लिए अपने छोटे से घर से ममता का त्याग करना होगा, अंतर को इतना विशाल बनाने के लिए लघु से मोह को तो छोड़ना ही होगा. अहंकार के लिए तब कोई काम नहीं बचेगा, क्योंकि अपना कहने जैसा तब कुछ भी नहीं होगा, सृष्टि जितनी अपनी है उतनी ही हर किसी की, सहजता और सरलता तब जीवन के सूत्र बन जायेंगे.
आपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन जन्मदिवस : कवि प्रदीप और ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है। कृपया एक बार आकर हमारा मान ज़रूर बढ़ाएं,,, सादर .... आभार।।
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