३ फरवरी २०१७
प्रकृति में निरंतर एक संगीत गूंज रहा है, हम अपने मन में चल रहे शोर के कारण उसे सुन न पायें वह बात अलग है. सत्य एक शून्य की भांति, आकाश की भांति चारों ओर फैला हुआ है, हम उसे स्पर्श नहीं कर पाते न ही देख पाते हैं, दोनों का आयाम ही अलग है. दोनों के गुण धर्म ही अलग हैं, जब तक कोई देह और मन के पार की झलक नहीं पा लेता तब तक उसके जीवन में प्रकाश नहीं उतरता.
Deh aur man ke paar jaana..satya me mil jaana, yahi antim satya hai...
ReplyDeleteबहुत सुन्दर और सटीक चिंतन...
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