२३ फरवरी २०१७
वैज्ञानिक कहते हैं पदार्थ कुछ और नहीं ऊर्जा का ही दूसरा रूप है, संत कहते हैं अहंकार कुछ और नहीं आत्मा ही है. हमारे चारों ओर सृष्टि का जो अति विशाल विस्तार दिखाई पड़ रहा है, यह पहले इस रूप में नहीं था और अभी भी निरंतर बदल रहा है, किन्तु जिस ऊर्जा के महासागर में यह स्थित है और जिससे बना है वह सदा से ऐसी ही है. हर व्यक्ति के भीतर जो 'मैं' की अनुभूति होती है वह भी जन्म के बाद ही समाज द्वारा दी गयी होती है, नवजात शिशु के पास कोई 'मैं' नहीं होता, केवल चेतना होती है, वह भी शुद्ध चेतना के महासागर में उठी एक लहर ही तो है. जो सदा से है और सदा रहेगी वही शुद्ध चेतना ही ईश्वर है.
सच में जिसके पास शुद्ध चेतना होती है, उसके पास ही ईश्वर हैं. हम सब तो अनुभूति के लहर पर सवार होकर नए-नए मायने गढ़ते हैं. बेहद सुन्दर
ReplyDeleteस्वागत व आभार राहुल जी !
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