Wednesday, February 22, 2017

स्वयं के निकट देह से दूर

२२ फरवरी २०१७ 
उपवास का वास्तविक अर्थ है स्वयं के निकट निवास करना, अर्थात देह से पृथक भीतर की चेतना के निकट वास करना. जब साधक अपने पास रहने की कला सीखना चाहता है तो ध्यान के द्वारा प्रसाद रूप में पाया उपवास इसमें सहायक है. भीतर यह भान होने लगता है  कि भूख देह को लगती है आत्मा इसे देखने वाला साक्षी मात्र है, भोजन आवश्यक है पर इसके प्रति आसक्ति आवश्यक नहीं है. साधक जब उपवास को सही अर्थों में समझने के बाद ही इसे करने का व्रत लेता है तो स्वयं को आत्मा के निकट सहज ही  पाता है. स्वयं का होना ही उसे पर्याप्त लगता है. जब देह का स्मरण ही नहीं आता तब ही सच्चा उपवास घटता है. मन में तरह-तरह के व्यंजनों को खाने की इच्छा हो और उपवास के नाम पर उनका सेवन हो तो आत्मा से दूरी बढ़ जाएगी और मन देह में ही वास करेगा. 

2 comments:

  1. जब देह का स्मरण ही नहीं आता तब ही सच्चा उपवास घटता है. आत्मा तो सदैव सबकुछ देखता रहता है.

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  2. स्वागत व आभार राहुल जी !

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