३१ दिसम्बर २०१६
वेदांत दर्शन के अनुसार जीव, ब्रह्म और माया ये तीन ही तत्व हैं. ब्रह्म माया पर शासन करता है और माया जीव पर. जब जीव भी माया के पार चला जाता है, ब्रह्ममय हो जाता है. अभी हम माया से बंधे हैं, माया का अर्थ है जगत के प्रति आसक्ति और मोह. हम जगत को अपने सुख-दुःख कारण मानते हैं. साधना करते -करते यह ज्ञान होने लगता है कि जगत नहीं हम स्वयं ही अपने सुख-दुःख के कारण हैं. यह ज्ञान होते ही या तो कोई आत्मग्लानि में चला जाता है अथवा तो प्रार्थना उसके जीवन में उतरती है. इसके बाद ही यह ज्ञान होता है कि यदि सुख-दुःख के कारण हम ही हैं तो उनसे मुक्ति भी हमारे हाथ में है, मुक्ति का बोध होते ही माया के पार जाकर ब्रह्म के साथ एकत्व का अनुभव होने लगता है. सतत साधना करते-करते यह अनुभव टिकने लगता है और तब कमलवत रहना सम्भव हो जाता है. नये वर्ष में प्रवेश करने से पूर्व क्यों न हम यह संकल्प लें कि आने वाले वर्ष में हम नियमित साधना करेंगे.
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