Thursday, December 15, 2016

कर्म बनें न बन्धनकारी


१६ दिसंबर २०१६ 

अविद्या, अस्मिता, राग, द्वेष  और अभिनिवेश ये पंच क्लेश हैं जो हमें बांधते हैं. मन जब इनमें से किसी भी वृत्ति में रहता है तो कर्माशय बनता है अर्थात उस समय किये जाने वाला हर कर्म बन्धन का कारण होता है. यहाँ कर्म मनसा, वाचा, कर्मणा कोई भी हो सकता है. कर्म पाप अथवा पुण्य कारी  कोई भी हो सकता है. जिस तरह पाप कर्म बन्धन कारी हैं उसी तरह पुण्य कर्म भी हमें सुख भोग के लिए जगत में लाते हैं. हर वृत्ति संस्कार को जन्म देती है और फिर उसी संस्कार से उसी तरह की वृत्ति का जन्म होता है और हम एक चक्र में फंस जाते हैं, इसे ही जन्म-मरण के चक्र के रूप में शास्त्रों में कहा गया है. मन यदि एकाग्र अवस्था में रहे अथवा तो निरुद्ध अवस्था में तब ही मन क्लेशों से उत्पन्न वृत्ति से रहित होता है, अर्थात कर्माशय नहीं बनता। नियमित ध्यान करने से ही इस स्थिति तक पहुँचा जा सकता है. 

No comments:

Post a Comment