१४ दिसम्बर २०१६
किसी भी बात अथवा घटना को देखने के कम से कम दो नजरिये होते हैं, अधिक से अधिक तो अनेक हो सकते हैं. इसका अर्थ हुआ यदि दो व्यक्तियों में आपस में विवाद हो रहा हो तो दोनों ही अपनी-अपनी जगह सही हो सकते हैं. अपनी बात रखते हुए कोई यदि इस सत्य को भी स्मरण कर ले तो एक पल में उसके भीतर सहजता का जन्म हो जाता है और यही सहजता धीरे-धीरे संतोष में बदलने लगती है. संतोष ध्यान को जन्म देता है और ध्यान पुनः हमें सहज बनाता है और यह सहजता इस जगत के प्रति अटूट विश्वास को जन्म देती है.
आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 15.12.16 को चर्चा मंच पर चर्चा - 2557 में दिया जाएगा
ReplyDeleteधन्यवाद
बहुत बहुत आभार !
ReplyDelete