७ दिसम्बर २०१६
जीवन के स्रोत से जुड़े बिना मन सन्तुष्ट नहीं हो सकता, जिस तक जाने का उपाय है ध्यान। पहले-पहल जब कोई ध्यान का आरम्भ करता है तो भीतर अंधकार ही दिखाई देता है, विचारों का एक हुजूम न जाने कहाँ से आ जाता है, किन्तु साधना व निरन्तर अभ्यास से मन ठहरने लगता है और उस स्रोत की झलक मिलने लगती है जहाँ से सारे विचार आते हैं. मन के पार जाये बिना कोई मन को देख नहीं सकता उस पर नियंत्रण का तो सवाल ही नहीं उठता। ध्यान का अनुभव किये बिना उस अनन्त शांति का स्वाद नहीं मिल सकता जिसका जिक्र सन्त कवि करते हैं, ध्यान ही वह राम रतन है जिसे पाकर मीरा नाच उठती है. एक मणि की तरह वह भीतर छिपा है जिसकी खोज ही साधक का लक्ष्य है.
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