१९दिसम्बर २०१६
जीवन प्रतिपल एक रस बाँट रहा है, ऐसा रस जिसका न कोई ओर है न छोर, जो अपने होने की घोषणा नहीं करता, जो जरा सा भी मुखर नहीं है, जिसे महसूस करने के लिए मन की एक ऐसी सहज अवस्था चाहिए जो सन्तुष्टता से उपजती है. वास्तव में वर्तमान का हर नन्हा सा पल अपने भीतर अनंत तक प्रवेश करने की क्षमता छिपाये है. हम शब्दों के आवरण में इतने ढके हैं कि उस सूक्ष्म द्वार को अनदेखा कर देते हैं. अनजान भविष्य की दुश्चिंताओं के कारण तथा अतीत की स्वप्नवत स्मृतियों के कारण हम वर्तमान में रहते भी कहाँ हैं. हमारे बिना ही जीवन इतना सरस और मधुर हो सकता है, इसका विश्वास भी तो नहीं होता। जिसे यह राज खुल जाता है वही वास्तव में घड़ी-घड़ी उस रस में डूब सकता है.
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