३० दिसम्बर २०१६
परमात्मा सदा ही हमारे साथ है. किन्तु जैसे सूर्य उदित होने पर भी यदि हम घर के दरवाजे-खिड़कियाँ बंद करके बैठे रहें तो उसका ताप व प्रकाश अनुभव में नहीं आता, वैसे ही परमात्मा और हमारे मध्य जब मन अथवा संसार रूपी दीवार आ जाती है तो उसका अनुभव नहीं होता. ध्यान में जब उसमें विश्राम करते हैं तब जगत का लोप हो जाता है. पुनः मन, बुद्धि में आने पर भी उसकी स्मृति बनी रहती है. वह तो तब भी हमें देख रहा होता है. उससे ही हमारा हर श्वास चलता है, उससे ही हर भाव उत्पन्न होता है, वह हमसे पूर्व ही उसे जानता है. चित्त जब केन्द्रित होता है उसकी ही शक्ति समाहित हो रही होती है, जब व्यर्थ के संकल्प-विकल्प उठाता है तब उसी की ऊर्जा व्यर्थ बह रही होती है. जैसे किसी घट में छेद हो तो पानी नहीं टिकता, वैसे ही अस्थिर मन में ध्यान नहीं टिकता. नये वर्ष में क्यों न हम नियमित ध्यान करें.
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