९ दिसम्बर २०१६
उपनिषद कहते हैं सृष्टि पूर्ण है, पूर्ण ब्रह्म से उपजी है और उसके उपजने के बाद भी ब्रह्म पूर्ण ही शेष रहता है, सृष्टि ब्रह्म के लिए ही है. इस बात को यदि हम जीवन में देखें तो समझ सकते हैं मन पूर्ण है, पूर्ण आत्मा से उपजा है अर्थात विचार जहाँ से आते हैं वह स्रोत सदा पूर्ण ही रहता है, मन आत्मा के लिए है. विचार ही कर्म में परिणित होते हैं और कर्म का फल ही आत्मा के सुख-दुःख का कारण है. यदि आत्मा स्वयं में ही पूर्ण है तो उसे कर्मों से क्या लेना-देना, वह उसके लिए क्रीड़ा मात्र है. हम इस सत्य को जानते नहीं इसीलिए मात्र 'होने' से सन्तुष्ट न होकर दिन-रात कुछ न कुछ करने की फ़िक्र में रहते हैं.
No comments:
Post a Comment