५ दिसम्बर २०१६
जीवन हमें नित नए रूप में मिलता है. यदि हमारा मन सीमाओं में बंधा है, मान्यताओं में जकड़ा है तो हम इसकी नवीनता को अनदेखा कर देते हैं और एक ही ढर्रे में जिए चले जाते हैं. यदि हर पल को वह जिस रूप में मिलता है वैसा ही स्वीकार करने का स्वभाव बना लिया जाए तो मन फूल की तरह ताजा बना रहेगा और निर्भार भी.
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