२० दिसम्बर २०१६
धर्म के जिस रूप को हम जानते और मानते हैं, जिसमें मूर्ति पूजा भी शामिल है और व्रत-उपवास भी, धार्मिक उत्सवों और कुछ रीति-रिवाजों का पालन भी, उससे हम वास्तविकता से दूर ही रह जाते हैं, स्वयं की वास्तविकता, जगत की वास्तविकता और परमात्मा की वास्तविकता इन तीनों से दूर. जन्म से लेकर मृत्यु पर्यन्त हम किसी अज्ञात ख़ुशी की आशा किये चले जाते हैं, जो एक न एक दिन मिलने वाली है. जीवन एक उत्सव कम संघर्ष अधिक ज्ञात होता है. सुख की आशा में हम तात्कालिक दुःख को भी हँसते-हँसते झेल जाने को तैयार रहते हैं, किंतु सच्चा धर्म सदा के लिए हर दुःख से मुक्ति का मार्ग सुझाता है.
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