२८ दिसम्बर २०१६
मन उसी का नाम है जो सदा डांवाडोल रहता है, तभी मन को पंछी भी कहते हैं हिरन भी और वानर भी..आत्मा रूपी वृक्ष के आश्रय में बैठकर टिकना यदि इसे आ जाये तो इसमें भी स्थिरता आने लगती है, वास्तव में वह स्थिरता होती आत्मा की है प्रतीत होती है मन में, जैसे सारी हलचल होती बाहर की है प्रतीत होती है मन में..मन तो दर्पण ही है जैसा उसके आस-पास होता है झलका जाता है. संगीत की लहरियों में डूबकर यह मस्त हो जाता है और किसी उपन्यास के भावुक दृश्य में भावुक..ऐसे मन का चाहे वह अपना हो या अन्यों का क्या रूठना और क्या मनाना...क्यों न नये वर्ष में मन को समझते हुए प्रवेश करें ताकि न किसी से मनमुटाव हो और न किसी का मन टूटे. आत्मा रूपी वृक्ष पर कुसुम की तरह खिला रहे सबका मन.
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