Monday, March 27, 2017

भीतर का आकाश मिले जब

२८ मार्च २०१७ 
एक शिशु अपने भीतर खाली आकाश जैसा मन लेकर पैदा होता है. वह सहज ही प्रसन्न होता है, यदि रोता भी है तो किसी न किसी कारण वश और जब कारण दूर हो जाये तो वह पल में हँसने लगता है. जैसे-जैसे वह बड़ा होता है, उसका मन भरता जाता है. वस्तुओं, घटनाओं, सूचनाओं, संबंधों की एक कई परतें उसके अंतर आकाश को भरने लगती हैं, सहजता खोने लगती है. यदि घर का वातावरण सात्विक है, सुबह सवेरे भजन आदि कानों में पड़ते हैं, व्रत-उत्सव पर घर में ध्यान पूजा होती है, प्रकृति का सान्निध्य उसे प्राप्त होता है तो  मन को खाली होने का अवसर मिलता रहता है, और वह पुनः-पुनः नया होकर जीवन का अनुभव करता है. किन्तु आज के व्यस्त माहौल में किसी के पास आराम से बैठकर साधना करने का समय नहीं है.  मन को विसर्जित होने का समय  ही नहीं मिलता तब तनाव केअलावा क्या होगा. जिसे जीवन का सबसे सुंदर समय माना गया था, उस अध्ययन काल में  आज विद्यार्थी भी तनाव के शिकार हो रहे हैं, हम बड़ों को ही बैठकर  इसका समाधान खोजना होगा, जीवन में आत्मज्ञान को उसका स्थान देना होगा ताकि मन अपने मूल से जुड़ा रहे और हम बेवजह ही दुःख को अपना साथी न बनाएं.

2 comments:

  1. जीवन में आत्मज्ञान को उसका स्थान देना होगा ताकि मन अपने मूल से जुड़ा रहे और हम बेवजह ही दुःख को अपना साथी न बनाएं.

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    1. स्वागत व आभार राहुल जी !

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