२७ मार्च २०१७
जीवन के प्रति हमारा जैसा भाव होगा जीवन उसी रूप में हमें
मिलता है. किसी ने कितना सत्य कहा है “जैसी दृष्टि वैसी सृष्टि”. हमारी धारणाएं व मान्यताएं
ही जीवन में मिलने वाले अनुभवों को परखने का मापदंड बनती हैं. जिस क्षण हमारा मन
किसी भी धारणा से मुक्त होता है जीवन अपने शुद्ध रूप में नजर आता है. सृष्टि की
भव्यता, दिव्यता और विशालता से हमारा परिचय होता है. हर व्यक्ति अपने भीतर उस
सम्भावना को छिपाए है जो उसे स्वयं के निर्भ्रांत स्वरूप से मिला सकती है. हम अपनी
ही मान्यताओं के कारण जगत को बंधन बनाकर बंधे-बंधे अनुभव करते हैं. जबकि मुक्तता
हमारा सहज स्वभाव है और हमारी मूलभूत आवश्यकता भी.
आपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन विश्व रंगमंच दिवस और ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है।कृपया एक बार आकर हमारा मान ज़रूर बढ़ाएं,,, सादर .... आभार।।
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार हर्षवर्धन जी !
Deleteमुक्त होना हमारा स्वभव है ... सुंदर भाव ...
ReplyDeleteस्वागत व आभार दिगम्बर जी !
Deleteसहजता के साथ मुक्त हो जाना सोचना अच्छा है सीमाएं दिखना शुरु हो जाती हैं मगर साथ में असहज करते हुए। सुन्दर ।
ReplyDeleteसीमाएं हमने ही बाँधी हैं जिस क्षण यह सत्य दिखाई देता है सीमाएं तत्क्षण टूटने लगती हैं..स्वागत व आभार !
Deleteमुक्तता हमारा सहज स्वभाव है और हमारी मूलभूत आवश्यकता भी.
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