७ मार्च २०१७
जीवन द्वंद्वों से गुंथा है, दिन-रात, सुबह-शाम, धरा-आकाश, स्वर्ग-नर्क, सुख-दुःख, अपना-पराया कितने सारे जोड़े हैं जिनसे हम प्रतिदिन दो-चार होते हैं. हमारी कठिनाई यही है कि हम सुख चाहते हैं, दुःख नहीं, स्वर्ग के गीत गाते हैं नर्क से मुँह फेरते हैं, अपनों के लिए आँखें बिछाते हैं, पराये से कोई मतलब नहीं, पर जीवन ऐसा होने नहीं देता, वह सदा जोड़ों में ही मिलता है. हर सुख की कीमत दुःख के रूप में देर-सवेर चुकानी ही है. स्वर्ग का मार्ग नर्क से होकर ही गुजरता है. कोई अपना कब पराया बन जायेगा पता ही नहीं चलता. क्या इसका अर्थ हुआ कि जीवन हमें छल रहा है ? नहीं, जीवन हमें द्वन्द्व से पार जाने का एक अवसर दे रहा है, क्योंकि उसके पार ही ही है वह महाजीवन जिसे कोई परमात्मा कहता है कोई, खुदा ! जब तक हम सुख-दुःख, गर्मी-सर्दी के साक्षी बनकर उनसे प्रभावित होना त्याग नहीं देते, सहज आनंद की धारा में, जो अनवरत अस्तित्त्व बहा रहा है भीगने से हम वंचित ही रह जाते हैं.
हमारी कठिनाई यही है कि हम सुख चाहते हैं, दुःख नहीं, स्वर्ग के गीत गाते हैं नर्क से मुँह फेरते हैं, अपनों के लिए आँखें बिछाते हैं, पराये से कोई मतलब नहीं, पर जीवन ऐसा होने नहीं देता, वह सदा जोड़ों में ही मिलता है. हर सुख की कीमत दुःख के रूप में देर-सवेर चुकानी ही है.
ReplyDeleteकितनी खूबसूरत बात कही है आपने।