९ मार्च २०१७
शास्त्र व संत कहते हैं हमारे अस्तित्त्व के सात स्तर हैं, शरीर, प्राण, मन, बुद्धि, संस्कार, अहंकार तथा आत्मा. एक-एक कर इन सोपानों पर चढ़ते हुए हमें परमात्मा तक पहुँचना है. समान ही समान से मिल सकता है इस नियम के अनुसार केवल आत्मा ही परमात्मा से मिल सकता है. इसका अर्थ हुआ पहले हमें आत्मा तक पहुँचना है, योग साधना के द्वारा पहले देह को स्वस्थ करना है, व्याधिग्रस्त देह के द्वारा समाधि का अभ्यास नहीं किया जा सकता. प्राणायाम के द्वारा प्राणों को बलिष्ठ बनाना है. स्वाध्याय तथा ज्ञान के द्वारा मन व बुद्धि को निर्मल करना है, ध्यान के द्वारा संस्कारों को शुद्ध करना है. उस अहंकार को समर्पित कर देना है जो परमात्मा से दूर किये रहता है. इस तरह धीरे-धीरे भीतर एकांत बढ़ता जाता है जहाँ पहले पहल आत्मा स्वयं से परिचित होती है, और फिर जब वह अपने पार देखती है परमात्मा ही परमात्मा उसे चारों ओर से घेरे है.
एकांत जीना परमात्मा से मिलन की एक कड़ी है. एकांत में ही हम अपने अहंकार को त्याग सकते हैं.
ReplyDeleteस्वागत व आभार राहुल जी !
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