२४ मार्च २०१७
हम जहाँ हैं वहाँ नहीं होते, तभी परम के दरस नहीं होतेजिन्दगी कैद है दो कल में, आज को दो पल मयस्सर नहीं होते
स्मृति और कल्पना इन दोनों के मध्य ही निरंतर हमारा मन डोलता रहता है. अतीत की स्मृति और भविष्य की कल्पना. हम वर्तमान में टिकते ही नहीं, हमारे वर्तमान के कर्म भी अतीत के किसी कर्म द्वारा पड़े संस्कार से प्रेरित होते हैं अथवा तो भविष्य की किसी कल्पना से. जीवन में कोई नयापन नहीं बल्कि एक दोहराव नजर आता है, जिससे नीरसता पैदा होती है, जबकि जीवन पल-पल बदल रहा है, जिसे देखने के लिए मन को बिलकुल खाली होना पड़ेगा, हर सुबह तब एक नया संदेश लेकर आएगी और हर रात्रि कुछ नया स्वप्न दिखाएगी. अभी तो हमारे स्वप्न भी वही-वही होते हैं. हमारे अधिकतर कर्म प्रतिक्रिया स्वरूप होते हैं, चाहे वे भौतिक हों या मानसिक.
Jiwan pal pal badal raha hai..jise dekhne ke liye man ko khali karna padega...
ReplyDeleteस्वागत व आभार राहुल जी..
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ReplyDeleteअनिता जी ! आप सही कह रही हैं, मनुष्य को वर्त्तमान में ही जीना चहिए ।
ReplyDeleteस्वागत व आभार शकुंतला जी !
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