३ मार्च २०१७
पंच तत्वों से बना है हमारा शरीर, तो जाहिर है पंच तत्वों के सारे गुण उसमें भी होंगे. पृथ्वी का सा अपार धैर्य और उसकी जैसी शक्ति भी, जिसे अनुभव करना चाहें तो धावकों अथवा खिलाडियों को देख सकते हैं, जो अकल्पनीय कारनामें कर लेते हैं. प्राणमय देह वायु तत्व से बनी है, गति उसका स्वभाव है प्राण के ही कारण सारी गतियाँ देह में होती हैं. प्राणायाम के द्वारा हम इसे पुष्ट कर सकते हैं. प्राण ऊर्जा यदि कम हो तो देह व्याधियों से जल्दी ग्रस्त हो जाती है और प्राण ऊर्जा यदि बढ़ी हुई हो तो देह में स्फूर्ति बनी रहती है. मन विचारों, भावनाओं, कामनाओं, आकांक्षाओं का केंद्र है. स्वाध्याय और ध्यान इसे सही दिशा देते हैं. मन यदि बहते जल सा प्रवाहमान रहता है तो ताजा रहता है. काम, क्रोध, लोभ मन को बांधते हैं तथा अंततः दैहिक व मनोरोगों के कारण होते हैं. भावमय देह हमारे आदर्शों पर आधारित होती है, यदि जीवन में हम किन्हीं मूल्यों को महत्व देते हैं, सहानुभति, सद्भावना और सेवा के भाव भीतर पल्लवित होने लगते हैं. अग्नि की भांति हम आगे-आगे बढ़ना चाहते हैं. यह सब जिस आकाश तत्व में होता है वैसा ही है आत्मा का वास्तविक स्वरूप, जो होकर भी नहीं सा लगता है किन्तु जो सब कारणों का कारण है.
मन विचारों, भावनाओं, कामनाओं, आकांक्षाओं का केंद्र है. स्वाध्याय और ध्यान इसे सही दिशा देते हैं. मन यदि बहते जल सा प्रवाहमान रहता है तो ताजा रहता है. काम, क्रोध, लोभ मन को बांधते हैं तथा अंततः दैहिक व मनोरोगों के कारण होते हैं. भावमय देह हमारे आदर्शों पर आधारित होती है, यदि जीवन में हम किन्हीं मूल्यों को महत्व देते हैं, सहानुभति, सद्भावना और सेवा के भाव भीतर पल्लवित होने लगते हैं.
ReplyDeleteआपके पोस्ट पढ़कर मन सुखद शांति की राह में अग्रसर हो जाता है.