११ मई २०१७
अनंत काल से यह सृष्टि चल रही है, लाखों मानव आये और चले गये, कितने नक्षत्र बने
और टूटे. कितनी विचार धाराएँ पनपी और बिखर गयीं. कितने देश बने और लुप्त हो गये.
इतिहास की नजर जहाँ तक जाती है सृष्टि उससे भी पुरानी है, फिर एक मानव का
सत्तर-अस्सी वर्ष का छोटा सा जीवन क्या एक बूंद जैसा नहीं लगता इस महासागर में,
व्यर्थ की चिंताओं में फंसकर वह इसे बोझिल बना लेता है. हर प्रातः जैसे एक नया
जन्म होता है, दिनभर क्रीड़ा करने के बाद जैसे एक बालक निशंक माँ की गोद में सो
जाता है, वैसे ही हर जीव प्रकृति की गोद में सुरक्षित है. यदि जीवन में एक सादगी
हो, आवश्यकताएं कम हों और हृदय परम के प्रति श्रद्धा से भरा हो तो हर दिन एक उत्सव
है और हर रात्रि परम विश्रांति का अवसर !
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