१६ मई २०१७
वेदों में ऋषियों ने कितनी सुंदर प्रार्थनाएं गायी हैं. मन जब प्रार्थना से भर जाता है तो शुद्ध होने लगता है. सबके सुख की कामना, सम्पन्नता की कामना जब भीतर सहज ही उठने लगती है तो हृदय मधुरता का अनुभव करता है. जीवन के उपहार को पाकर जो मन अस्तित्त्व के प्रति कृतज्ञता के भाव से नहीं भरा वह परमात्मा के आनन्द से वंचित ही रह जाता है. जीवन में प्रेम को अनुभव करने के कोमल पल भी साधक के लिए उसे ही याद करने का निमित्त बन जाते हैं. प्रकृति के सुहाने मंजर हों या किसी के कंठ की मधुर आवाज, वर्षा की सोंधी सुगंध हो या उषा का आकाश, हर शै उसे याद दिलाने का सबब बन जाती है. धन्यता और कृतज्ञता का भाव जिसके हृदय में जग जाता है वह अंतर पल-पल प्रार्थना में लीन रहता है.
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