२९ मई २०१७
जीवन में कितनी भी बुरी परिस्थिति आ जाये, कितना भी अँधेरा छा जाये, ऐसा लगे सब
रास्ते बंद हो गये हैं, जीवन तब भी भीतर ही भीतर महकता रहता है. यदि मन में इस का
पूर्ण विश्वास हो तो आशा की एक छोटी सी किरण उस तक ले जाती है. मन कितने भी प्रश्न
खड़ा करता रहे, आत्मा हर क्षण एक मधुर मुस्कान बिछाये प्रतीक्षारत है. आत्मा का
स्रोत वह अनंत प्रेम स्वरूप परमात्मा है, जो सदा हितैषी है, सुहृद है. जगत में सब
कुछ प्रतिपल बदल रहा है, यहाँ अच्छा काल भी टिकने वाला नहीं है और बुरा काल भी. हर
अनुभव आत्मा को परिपक्व कर सकता है, उसे जीवन के निकट ले जा सकता है यदि कोई हृदय
में परम के प्रति आस्था का अखंड दीपक जलाये रखे.
अनिता जी ! आप ठीक कह रही हैं, हमारे भीतर ही वह परमात्मा बैठा हुआ है, वही हमें निराशा के अंधेरे से निकाल कर आशा के प्रकाश तक पहुँचाता है, हमें नव- जीवन देता है ।
ReplyDeleteस्वागत व आभार शकुंतला जी !
Deleteआपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन कन्हैयालाल मिश्र 'प्रभाकर' और ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है। कृपया एक बार आकर हमारा मान ज़रूर बढ़ाएं,,, सादर .... आभार।।
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