३१ मई २०१७
अहंकार दुःख का भोजन करता है. किसी पल यदि मन में दुःख है तो अहंकार है, यदि कोई
पूर्ण सुख में है तो उस क्षण में अहंकार रहता ही नहीं. हमारा अहंकार जितना बड़ा है
उतने ही बड़े हमारे दुःख होंगे. जब भीतर से अहंकार चला जाता है तब जो खालीपन भीतर
आता है वही शांति है, आनन्द है. ‘मैं’ और ‘मेरे’ से बने सारे संबंध दुःख का कारण
हैं, चाहे वे किसी वस्तु से हों, व्यक्ति से या परिस्थिति से. वास्तव में आत्मा
शून्य के अतिरिक्त कुछ भी नहीं, इसीलिए संत कहते हैं सारे संबंध मिथ्या हैं, मिथ्या
का अर्थ यह नहीं कि वे हैं ही नहीं, वे हैं पर जिस रूप में हम उन्हें संबंध मानते
हैं, उस रूप में नहीं हैं. जब तक हमारा स्वयं के साथ संबंध हमें स्पष्ट नहीं होता
तब तक हम अन्यों के साथ अपने सच्चे संबंध को जान ही नहीं पाते.
बहुत सही बात
ReplyDeleteस्वागत व आभार रश्मि जी !
ReplyDeleteसंबंधों के मामले में अहंकार को त्यागना ही पड़ेगा, दोनों एक साथ नहीं रह सकते...
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