Thursday, June 14, 2018

शक्तिस्रोत छुपा है भीतर


१५ जून २०१८ 
बाहरी साज-सज्जा कितनी भी शानदार हो यदि कोई घर भीतर से संवारा नहीं गया है तो उसमें रहने वाले स्वस्थ नहीं हो सकते. ऐसे ही हमारा मन यदि संसारी और किताबी ज्ञान से तो भरा हो पर भीतर से भीरु हो, भयभीत रहता हो, और संस्कारों का गुलाम हो तो आत्मा खिल नहीं सकती. बीज रूप में आत्मशक्ति सबके भीतर मौजूद है, उसे पनपने के लिए उर्वर भूमि चाहिए, ऐसा मन चाहिए जो तूफानों में भी अचल रहे, भक्ति की कल-कल धारा जिसमें बहती हो, शांति और आनंद से सुवासित पवन का जहाँ बेरोकटोक आवागमन हो. शांत और सुदृढ़ मन में ही आत्मा का तेज धारण करने की शक्ति हो सकती है. ऐसा मन जो जगत को साक्षी भाव से देखता हो, दर्पण की तरह जिसमें कोई प्रतिबिम्ब ठहरता न हो, जो अछूता ही रह जाता हो. ऐसे मन में ही उस ज्योति की झलक मिलती है. एक बार स्वयं का परिचय हो जाने के बाद मन परम के प्रति झुकने के साथ-साथ हर क्षण स्वयं को शक्तिशाली अनुभव करता है.

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