७ जून २०१८
महान संत कवि तुलसीदासजी ने कहा है, ‘भय बिनु होई न प्रीति’, वहाँ
प्रसंग है कि जब समुद्र पर बाँध बनाने के लिए श्रीराम ने उससे विनती की तो उसने
कोई ध्यान नहीं दिया, जब डर दिखाया तो वह हाथ जोड़ कर खड़ा हो गया. किन्तु इस उक्ति
को हम मानव और भगवान के सबंध में भी जोड़ कर देख सकते हैं. भय ही मानव को अदृश्य परमात्मा
के सम्मुख लाकर खड़ा कर देता है. भय को दूर करने के लिए मानव परमात्मा को याद करता
है, किन्तु जब तक मन में भय है, ईश्वर की अनुभूति हो ही नहीं सकती. इसी कारण
परमात्मा से एक दूरी बनी रहती है और जीवन के अंतिम क्षण तक कोई न कोई भय मना में
बना ही रहता है. ध्यान में जब साधक भीतर जाकर भय के कारणों को स्पष्ट देख लेता है,
वह उससे मुक्त हो जाता है. मन में जब कोई द्वंद्व नहीं रहता उसी क्षण शांति का
अनुभव होता है, और वह स्थिति परम सत्य की ओर इशारा करती है.
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