१८ जून २०१८
मन जल की तरह है, तभी तो वह जिस वस्तु में प्रवेश करता है उसी
का आकार धारण कर लेता है. मन यदि कठोर हो जाये तो बर्फ जैसा हो जाता है, और क्रोधित
हो जाये तो वाष्प जैसा. दोनों ही स्थितियों में वह अपना स्वभाव खो देता है. मन में
यदि कोई विकार आ जाये तो भी वह अपनी सहजता खो देता है. जल नीचे की और बहता है, मन
यदि अमानी होकर रहे तो स्वभाव में टिका रहेगा, अन्यथा असहज हो जायेगा. सम्मान की
कामना ही मन को स्वभाव से दूर कर देती है, जबकि स्वभाव में ही विश्राम है. जल जीवन
का प्रतीक है. इसी तरह चेतन सत्ता का जब प्रकृति के साथ संयोग होता है, मन के रूप
में ही उसकी उपस्थिति का ज्ञान होता है, अर्थात जीवन की अभिव्यक्ति मन के द्वारा
ही होती है. मन को समझ कर जो इसके पार देखने में सक्षम हुआ वही इसे सदा दर्पण की
भांति चमकता हुआ देखना चाहता है.
मन है तो शरीर का रूप है जल समान ...
ReplyDeleteसुंदर वचन ...