१२ जून २०१८
जीवन जितना सरल है उतना ही जटिल भी. यहाँ फूल के साथ कांटे भी
हैं और सुख के साथ दुःख भी. यहाँ हर शै जोड़े में आती है. स्वास्थ्य के साथ रोग भी
है और बचपन के साथ बुढ़ापा भी. जो इन दो के पार निकल गया वह बच गया जो दो में से एक
को चाहता रहा और एक से बचता रहा, वह जीवन भर बंधन में फंसा रहा. पुण्य कर्म उदय
होने पर सहज ही आनंद का अनुभव होता है, पाप का उदय होने पर विपत्ति आती है. सब कुछ
सदा ही ठीक-ठीक चलता रहे ऐसी कामना जो करता है, उसे दो के पार ही जाना होगा. उस
स्थिति में मन साक्षी भाव में टिकना सिख जाता है. साक्षी भाव में रहकर, कर्त्तव्य
कर्म को पालन करते हुए अपने जीवन को उन्नत बनाने का प्रयत्न करने वाले साधक के
जीवन में भविष्य के लिए पाप कर्म जमा नहीं होते. उसका वर्तमान भी संतुष्टिदायक
होता है.
नमस्ते,
ReplyDeleteआपकी यह प्रस्तुति BLOG "पाँच लिंकों का आनंद"
( http://halchalwith5links.blogspot.in ) में
गुरुवार 14 जून 2018 को प्रकाशनार्थ 1063 वें अंक में सम्मिलित की गयी है।
प्रातः 4 बजे के उपरान्त प्रकाशित अंक अवलोकनार्थ उपलब्ध होगा।
चर्चा में शामिल होने के लिए आप सादर आमंत्रित हैं, आइयेगा ज़रूर।
सधन्यवाद।
बहुत बहुत आभार रविन्द्र जी !
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