१६ अगस्त २०१८
आत्मा रूप से परमात्मा
हरेक के भीतर समान रूप से विद्यमान है. वह हमारे कर्मों द्वारा प्रकट होना चाहता
है. संत उसे मार्ग दे देते हैं और हम उसके मार्ग में अड़ कर खड़े हो जाते हैं. हमारी
कामनाएं उसके मार्ग में सबसे बड़ी बाधा हैं, ध्यान की गहराई में जब मन खो जाता है,
वही वह रह जाता है. प्रकृति उसे सहज रूप से अभिव्यक्त होने दे रही है, इसी लिए
इतनी आकर्षक प्रतीत होती है. नन्हे पंछी और शावक भी उसी को अभिव्यक्त कर रहे हैं और
सुकोमल फूल भी. मानव का मन यदि स्वच्छ पानी की तरह निर्मल और हर पात्र में ढल जाने
वाला हो, नमनीय हो, तो परमात्मा उसमें से स्वयं को व्यक्त कर सकता है. हमारा
स्वभाव यदि पर्वत की तरह कठोर है, झुकना ही नहीं जानता हो तो श्वास से भी सूक्ष्म
परमात्मा उसमें से कैसे प्रकटेगा.
No comments:
Post a Comment