२८ अगस्त २०१८
जीवन जब हमारे निकट
मुस्कुराता हुआ गुनगुना रहा होता है, हम किन्हीं व्यर्थ की बातों में खोये उससे
नजरें नहीं मिलाते. संत कहते हैं, परमात्मा चारों ओर उसी तरह मौजूद है जैसे हवा और
धूप. खिड़कियाँ बंद हों तो धूप भला अंदर आये कैसे और हवा थोड़ी बहुत आ भी गयी तो उसे
ताज़ी रखने के लिए भी तो खिड़कियाँ खोलनी होंगी. हवा को कैद नहीं कर सकते न ही धूप
को...उन्हें तो वे जैसे हैं, जब हैं, उसी वक्त महसूस करना है, इसी तरह परमात्मा को
हर क्षण को जैसा वह है वैसा ही स्वीकार कर ही महसूस किया जा सकता है. मन पर
विचारों और विकारों के पर्दे लगे हों तो उसका प्रवेश सम्भव नहीं है.
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