२३ अगस्त २०१८
कितनी बार हमने ये
शब्द नहीं सुने हैं, ‘हम अपने भाग्य के निर्माता स्वयं हैं’. भाग्य का अर्थ जीवन
में केवल सुखद परिस्थितियाँ आना ही तो नहीं है. जो भी हमारे साथ घट रहा है, वह सब हमारे
ही द्वारा रचा गया है. सुख को तो हम स्वयं की कृति मान सकते हैं, पर दुःख का कारण स्वयं को नहीं मानते. यही बात है कि दुःख जीवन से
कभी विदा ही नहीं लेता. अनजाने में हम स्वयं ही रोज-रोज इसकी नई-नई फसल बोते रहते
हैं और हर बार इसका कारण किसी न किसी पर डाल देते हैं. जीवन में किसी ने कामयाबी
हासिल की तो हम उसकी मेहनत और कठोर परिश्रम के कारण उसे बधाई देते हैं, इसी तरह जब
कोई अपने जीवन में असफल हुआ, अस्वस्थ हुआ और दुखी हुआ, यदि उसी क्षण वह इसकी
जिम्मेदारी भाग्य पर न डालकर स्वयं पर लेने की हिम्मत दिखाए, उसी क्षण से उसका
भाग्य बदलने लगता है. हमारे मन का तनाव भी खुद का बनाया हुआ है और हमारे मन का
उल्लास भी हमारी ही रचना है. जीवन हर क्षण एक सा है, हमारी दृष्टि जैसी होगी वह
वैसा ही दिखाई देने वाला है. किसी के पास कुछ भी न हो पर उसका मन प्रसन्न रहने की
कला जानता हो तो वह अभाव का अनुभव ही नहीं करेगा. किसी के पास सब कुछ हो और मन को
खिलने की कला नहीं आती हो तो वह उस सुख को भी पीड़ा में बदल सकता है.
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