६ अगस्त २०१८
संत कहते हैं, मनसा, वाचा, कर्मणा हमें एक होना है, जैसा हम सोचते हैं, वैसा ही
वाणी में प्रकटे, उसी के अनुसार हमारे कृत्य हों. तभी जीवन में सच्चा योग फलित
होता है. हो सकता है हमारे भाव शुद्ध हों पर वाणी कठोर हो जाती हो, अथवा जितना
कार्य हम करना चाहते हों, उतना करते न हों. हमारे संकल्प जब तक पूर्णता को प्राप्त
नहीं हो जाते तब तक योग जीवन में नहीं उतरा. कोई व्यक्ति बहुत श्रम करता है किंतु
करते समय प्रसन्न नहीं है, अर्थात उसका मन कार्य के साथ एक नहीं हुआ. कोई ऊपर से
बहुत मधुर बोलता है पर मन से उसके विपरीत सोचता है, तब भी भीतर संघर्ष बना ही
रहेगा. जिस क्षण हम पूर्ण सकारात्मक हो जाते हैं, बाहर कैसी भी परिस्थिति हो मन
में एक शांति का अनुभव करते हैं, तब बोलते समय वाणी की सजगता बनी रहेगी, कृत्य
करने में त्रुटियाँ भी कम होंगी. जीवन का हर दिन एक नयी चुनौती लेकर आता है, बल्कि
हर क्षण ही हमारे सामने एक अवसर होता है, जिसमें हम योग के पद पर स्थित रह सकते
हैं अथवा उससे नीचे उतर सकते हैं.
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