३ जुलाई २०१८
सुबह से शाम तक सभी को समय एक जैसा मिला है, कोई उन्हीं क्षणों
में कितना कुछ कर जाता है और कोई समय की कमी का रोना रोता रहता है. समय अति
बहुमूल्य है, यह जानते हुए भी हम कितना समय व्यर्थ के कामों में गंवा देते हैं. वास्तव
में जब तक हमारे द्वारा जीवन में प्राथमिकतायें तय नहीं होतीं, हमारा समय यूँही
व्यय होता रहेगा. देह को स्वस्थ रखने के लिए व्यायाम और मन को स्वस्थ रखने के लिए
ध्यान उसी तरह आवश्यक है, जैसे देह बनाये रखने के लिए भोजन, जब तक यह हम पूर्णतया
स्वीकार नहीं कर लेते तब तक साधना के लिए समय निकालना जरूरी नहीं लगेगा. इसी तरह
यदि कोई तय कर ले कि लेखन यदि प्रतिदिन नहीं किया जाता तो विचारों का प्रवाह रुक
जाता है, उसमें सहजता नहीं रहती, तब वह उसे भी प्राथमिकता देना आरम्भ कर देगा. मात्र
हमारा भौतिक अस्तित्त्व बना रहे, इतना ही तो पर्याप्त नहीं है. इस होने में निरंतर
प्रज्ञा का विकास हो तभी अपने स्वरूप में हम बने रह सकते हैं.
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