Wednesday, December 7, 2011

सत्य और शुभ

जुलाई २००२ 
ईश्वर हमारा अंतरंग है. उसकी उपासना करने के लिये विधि-विधान की नहीं भाव भरे हृदय की आवश्यकता है. सहज रूप से जब अंतर में उसके प्रति प्रेम की हिलोर उठे तो उसी क्षण पूजा हो गयी, फिर धीरे-धीरे यह प्रेम उसकी सृष्टि के प्रत्येक प्राणी के प्रति उत्पन्न होने लगता है. शुद्ध प्रेम के कारण ही परमात्मा भक्त के कुशल-क्षेम का वहन करते हैं. मन विश्रांति का अनुभव करता है, हमारा सामर्थ्य बढ़ता है. सत्य और शुभ के प्रति सहज प्रेम ही ईश्वर की राह में उठाया पहला कदम है. 

4 comments:

  1. सहज रूप से जब अंतर में उसके प्रति प्रेम की हिलोर उठे तो उसी क्षण पूजा हो गयी,
    ....
    तब तो दीदी मैं भी पुजारी हूँ :)

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  2. भाव सच्चे हैं तो हमारा चलना फिरना भी परिक्रमा ही है उसकी!

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  3. अनुपमा जी, आनंद जी, अनुपमा जी आप सभी का आभार!

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