Friday, May 17, 2013

चित नवनीत बनेगा जब



मन खाली होने पर सहज ही उसकी उर्ध्व गति होती है- ईश्वर की ओर, ठीक जैसे तराजू के कांटे. संसार का दबाव है इसलिए ऊपर का कांटा नीचे के कांटे की बराबरी पर नहीं रहता. जिसकी जिसमें सत्ता होती है, उसमें आकर्षण भी होता है. ईश्वर की सत्ता भीतर है ही, संसार भी है, संसार की ओर आकर्षण अधिक होने से उसका पलड़ा अभी भारी है. इसीलिए कुछ दिन आश्रम में रहकर साधना की जाती है, अथवा तो कुछ समय प्रतिदिन सबसे विलग होकर. निर्जन में दही जमाकर ही उसमें से मक्खन निकाला जाता है. ज्ञान और भक्ति रूपी मक्खन एक बार मन रूपी दूध से निकल जाये तो संसार रूपी पानी में डाल देने पर भी वह निर्लिप्त होकर तिरता रहेगा, पर मन को कच्चे दूध की अवस्था में ही यदि संसार में छोड़ देंगे तो वह कभी ईश्वर की ओर आकर्षित नहीं होगा. एक बार उस ईश्वर को अपने भीतर पहचान कर उसकी कृपा से प्राप्त ज्ञान ही हमें मुक्त करता है. ज्ञान होने पर शुद्ध भक्ति का उदय होता है.  

6 comments:

  1. ज्ञान होने पर शुद्ध भक्ति का उदय होता है..... बिल्‍कुल सही कहा आपने
    आभार

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  2. एक बार उस ईश्वर को अपने भीतर पहचान कर उसकी कृपा से प्राप्त ज्ञान ही हमें मुक्त करता है.......

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  3. सार्थक कथन ....!!

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  4. आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल रविवार (19-05-2013) के चर्चा मंच 1249 पर लिंक की गई है कृपया पधारें. सूचनार्थ

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  5. ज्ञान होने पर शुद्ध भक्ति का उदय होता है.

    सार्थक कथन

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  6. सदा जी, राहुल जी, अनुपमा जी, अरुन जी व रमाकांत जी आप सभी का स्वागत व आभार !

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