प्रशांत चित्त
ही ब्रह्म का अनुभव कर सकता है. जैसे लालटेन का शीशा प्रकाश को बढ़ा देता है, वैसे
ही चित्त आत्मा को शक्ति को बढ़ाकर बाहर भेजता है. शीशा जितना स्वच्छ होगा, प्रकाश
उतना ही बाहर आएगा. चित्त यदि पूर्ण रूप से संतुष्ट हो, उसे कोई कामना ही न हो चित
सुलझा हुआ हो, उसमें कोई द्वंद्व न हो, तो वह शांत रह सकता है. मन यदि कहीं भी उलझा
हुआ है तो वह साधना में आगे नहीं बढ़ सकता. शांत मन में चिति शक्ति आत्म शक्ति को
विस्तृत करके बाहर प्रकाशित कर देती है. छोटी-छोटी बातों पर जब मन प्रतिक्रिया
करना छोड़ देता है तो वह शांत हो जाता है. ठहरा हुआ मन एक शांत झील की तरह होता है,
जिसमें आत्मा झलकती है. साधना की गहराई में जाना हो तो मन शांत होना चाहिए.
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