आज गुरू पूर्णिमा है, अतीत में जितने भी गुरू हुए, जो वर्तमान में हैं और जो
भविष्य में होंगे, उन सभी के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करने का दिन. शिशु का जब जन्म
होता है, माता उसकी पहली गुरू होती है. उसके बाद पिता उसे आचार्य के पास ले जाता
है, शिक्षा प्राप्त करने तक सभी शिक्षक गण उसके गुरु होते हैं. जीविका अर्जन करने
के लिए यह शिक्षा आवश्यक है लेकिन जगत में किस प्रकार दुखों से मुक्त हुआ जा सकता
है, जीवन को उन्नत कैसे बनाया जा सकता है, इन प्रश्नों का हल कोई सद्गुरू ही दे
सकता है. इस निरंतर बदलते हुए संसार में किसका आश्रय लेकर मनुष्य अपने भीतर
स्थिरता का अनुभव कर सकता है, इसका ज्ञान भी गुरू ही देता है. जगत का आधार क्या है
? इस जगत में मानव की भूमिका क्या है ? उसे शोक और मोह से कैसे बचना है ? इन सब
सवालों का जवाब भी यदि कहीं मिल सकता है तो वह गुरू का सत्संग ही है. जिनके जीवन
में गुरू का ज्ञान फलीभूत हुआ है वे जिस संतोष और सुख का अनुभव सहज ही करते हैं
वैसा संतोष जगत की किसी परिस्थिति या वस्तु से प्राप्त नहीं किया जा सकता. गुरू के
प्रति श्रद्धा ही हमें वह पात्रता प्रदान करती है कि हम उसके ज्ञान के अधिकारी
बनें.
शिक्षा आवश्यक है
ReplyDeleteस्वागत व आभार !
Deleteबहुत बहुत आभार !
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