एक जीवन है हम सबका जीवन, यानि सामान्य जीवन, जिसमें कभी ख़ुशी है कभी गम हैं. इस
जीवन में जिन खुशियों को फूल समझकर हमने ही चुना था वे ही अपने पीछे गम के कांटे
छुपाये हैं यह बात देर से पता चलती है. इस जीवन में छले जाने के अवसर हर कदम पर
हैं, क्योंकि यहाँ असलियत को छुपाया जाता है, जो नहीं है उसे ही दिखाया जाता है.
एक और जीवन है ज्ञानीजन का जीवन, जिसमें सदा वसंत ही है, जिसमें खुशियों के फूलों
को चुनने की आवश्यकता नहीं होती, बल्कि वे स्वयं ही फूल बन जाते हैं, ऐसे फूल
जिनमें कोई कांटे नहीं होते. उस जीवन में कोई छल नहीं होता क्योंकि भीतर और बाहर
वे एक से हैं. वे वास्तविकता को जान कर सहज रहना सीख जाते हैं, कोई दिखावा, दम्भ
या पाखंड, बनावट उन्हें छू भी नहीं पाती. जीवन जैसा उन्हें मिलता है उसे वैसा ही
स्वीकार करने की क्षमता वे अपने अंदर जगा लेते हैं. वे वर्तमान में रहते हैं और
अतीत के भूत से पीछा छुड़ा लेते हैं. भविष्य के दिवास्वप्न भी उन्हें नहीं लुभाते
क्योंकि जीवन की क्षण भंगुरता का उन्हें हर समय बोध रहता है, जिस कल के लिए हम
संग्रह करते हैं, और वर्तमान में कष्ट उठाते हैं, उस कल को वे कल पर ही छोड़ देते
हैं. वह कल भी उनके लिए इस वर्तमान की तरह सुंदर ही होगा ऐसा उन्हें यकीन रहता है.
ऐसे ही जीवन से हमारा परिचय कराने के लिए परमात्मा ने गुरू और शास्त्र का निर्माण
किया हैं.
बहुत सुंदर लिखा
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार (19-07-2019) को "....दूषित परिवेश" (चर्चा अंक- 3401) पर भी होगी।
ReplyDelete--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'