जीवन की परिभाषाएं कितनी ही देते चलो, जीवन है कि चूकता ही नहीं, हाथ में आता ही
नहीं. नित नये रंग बिखेरे चला जाता है. जीवन के रंग अनंत हैं और इसके ढंग भी अनंत
हैं. इसे किसी खांचे में फिट नहीं किया जा सकता. यदि कोई सोचे कि विकासशील देश के
किसी सुदूर गाँव में ही असली जीवन है तो वह भी आधा सच होगा और यदि कोई कहे विकसित
देशों में ही सच्चा जीवन है तो वह भी अर्धसत्य होगा. जीवन के मर्म को जाने बिना हम
कुछ भी करें, कहीं भी रहें एक तलाश भीतर चलती ही रहती है. यही माया है. सर्व
सुविधा सम्पन्न होकर भी कुछ यहाँ अभाव का अनुभव करते हैं और कुछ न होते हुए भी
अलमस्त देखे जाते हैं. इसका अर्थ हुआ जो भी जहाँ है वहाँ यदि थोड़ा गहराई से देखे कि
जिस जीवन को ढूँढने में हम सारा श्रम लगा रहे हैं, वह तो एक दिन हाथ से फिसल जाने
वाला है, और जो हमारे पास इस समय है वह अमूल्य है. वर्तमान के क्षण में जिसने जीवन
से मुलाकात नहीं की वह भविष्य में कभी करेगा, ऐसी कल्पना दिवास्वप्न के सिवा कुछ
भी नहीं.
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