शब्द
अधूरे हैं, अल्प सामर्थ्य है शब्दों में. भाव गहरे हैं, अनंत ऊर्जा है भावों में, किंतु गुरू
के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करनी हो तो भाव भी कम पड़ जाते हैं. वहाँ तो मौन ही शेष
रहता है. जब उसके हृदय से साधक का हृदय जुड़ जाता है तो मौन में ही संवाद घटता
है. गुरू के शब्द और कर्म प्रेम से ही उपजे हैं. वह नित जागृत है, करुणा, प्रेम और
जीवन के प्रति उत्साह के भाव उसके हृदय में लबालब भरे हैं. उसका ज्ञान एक पवित्र
जल धारा की तरह साधकों के मनों को तरोताजा कर देता है. उसके हृदय का वृक्ष शांति,
सुख और आनंद के फलों से लदा है, जो वह बेशर्त प्रदान करता है. उसकी आँखों में
प्रेम की मस्ती है, आत्मा में बेशकीमती खजाना है, जो वह लुटा रहा है. वह साधकों के
अंतर में साधना का बीज बोता है, जो भी व्यर्थ है उसे उखाड़ फेंकने के लिए प्रेरित
करता है, जो भी अच्छा है, उसे बाड़ लगाकर सहेजने के लिए कहता है. उसके भीतर से
जो स्वर्गिक संगीत निकलता है, उसे सुनकर साधक जीवन के सुन्दरतम रूप को देखते हैं.
उसकी आत्मा के प्रकाश में भीग कर उनमें भी भीतर जाने की ललक जगती है, पावों में
पंख लग जाते हैं, मन जीवन के प्रति तीव्र चाह से भर उठता है.
आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज सोमवार 29 जुलाई 2019 को साझा की गई है......... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार यशोदा जी !
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