Thursday, July 4, 2019

बीती ताहि बिसार दे



अतीत की बातों को हमारा लेकर दुखी होना वैसा ही है जैसे कोई वर्षों पूर्व आयी आँधी के द्वारा फैलायी गंदगी को आज बाल्टियाँ भर-भर कर धोये. पानी व्यर्थ जायेगा, श्रम भी व्यर्थ जायेगा और वह गंदगी जो अब है ही नहीं भला साफ कैसे हो सकती है. मन हर दिन नया हो रहा है, रोज जो भोजन हम ग्रहण करते हैं उसके सूक्ष्म संश से ही मन बनता है, जो श्वास हम आज ग्रहण कर रहे हैं वही हमें ऊर्जा से भर रही है, जो आज मिला है वह आज के लिए है, इस ऊर्जा को हम व्यर्थ ही पुरानी बातों को याद करने में लगते हैं फिर दुखी भी होते हैं. स्मृतियाँ सुखद हों तब भी उन्हें ज्यादा तूल देना ठीक नहीं, बल्कि आज को एक सुखद स्मृति बनाने के लिए ऊर्जा का सदुपयोग करना उचित है. सबसे प्रमुख बात है कि सारे अनुभव वर्तमान के क्षण में ही होते हैं, अतीत में जो भी सुखद हुआ, वह उस समय के लिए वर्तमान में ही घटा था, आज एक नये अनुभव के लिए स्वयं को खाली रखना है, वरना कोल्हू के बैल की तरह अतीत लौट-लौट कर हमारे सम्मुख वर्तमान की शक्ल में आता रहेगा, क्योंकि हम उसे भूलना ही नहीं चाह रहे हैं.

2 comments:

  1. जी नमस्ते,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (06 -07-2019) को '' साक्षरता का अपना ही एक उद्देश्‍य है " (चर्चा अंक- 3388) पर भी होगी।

    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    आप भी सादर आमंत्रित है

    ….
    अनीता सैनी

    ReplyDelete
  2. बहुत बहुत आभार !

    ReplyDelete