Monday, December 12, 2011

परिपक्वता


अगस्त २००२ 
हृदय में ईश्वर के प्रति प्रेम हो तो धीरे-धीरे वही भक्ति में बदल जाता है. ईश्वर के साथ हमारा अनन्य सम्बन्ध है, इसका भास होने लगता है. प्रेम हमें हल्का करता है, द्वेष, ईर्ष्या व अहंकार हमें भारी बनाता है. प्रेम हमें विश्वासी बनाता है. जीवन क्षणभंगुर है, यह भान सदा बना रहे तो हम अपने अमूल्य जीवन के एक पल को भी प्रेमविहीन न होने दें, क्योंकि वास्तव में हम उन्हीं क्षणों में जीवित हैं, शेष समय तो हम व्यर्थ ही करते हैं. जैसे पका हुआ मन स्वयं ही झर जाता है, ऐसे ही परिपक्व मन स्वयं ही झुक जाता है, अपरिपक्व मन ही हठी होता है.

2 comments:

  1. हम अपने अमूल्य जीवन के एक पल को भी प्रेमविहीन न होने दें, क्योंकि वास्तव में हम उन्हीं क्षणों में जीवित हैं, शेष समय तो हम व्यर्थ ही करते हैं.
    .......
    अपरिपक्व मन ही हठी होता है.
    ...abhar didi!

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  2. आनंद जी, आभार!

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