अप्रैल २००३
समय मन के सापेक्ष है, जब हम स्वयं को छोटे मन के साथ एक मानते हैं तब समय काटे
नहीं कटता और जब विशाल मन अर्थात आत्मा में स्थित हों तो समय उड़ने लगता है तब हमें
भूत, भविष्य और वर्तमान का ज्ञान ही नहीं रहता. हमारे जीवन में युक्ति, भक्ति,
शक्ति और मुक्ति क्रमशः आती है. पहले युक्ति से जीवन को उन्नत बनाना, फिर भक्ति का
उदय, भक्ति से ही शक्ति मिलती है, जिससे मन धीरे-धीरे संसार का अवलम्बन छोड़ता जाता
है, मुक्ति तो परम लक्ष्य है वही विशाल मन है. जीवन में ध्यान, समाधि, मौन हो तो
मनः प्रसाद मिलता है, सौम्यता जीवन में झलकती है. आत्मविद्या जब तक नहीं मिली तब
तक हम विद्यार्थी हैं.
हाँ सत्य है सीढ़ी दर सीढ़ी ही बढ़ना होता है ।
ReplyDeleteसमय मन के सापेक्ष है, जब हम स्वयं को छोटे मन के साथ एक मानते हैं तब समय काटे नहीं कटता और जब विशाल मन अर्थात आत्मा में स्थित हों तो समय उड़ने लगता है
ReplyDeleteBITTER TRUTH. JIWAN KA MUL......
सापेक्ष है, जीवन में युक्ति, भक्ति, शक्ति और मुक्ति क्रमशः आती है.
ReplyDeleteबहुत बढ़िया प्रस्तुति,
RECENT POST ,,,, काव्यान्जलि ,,,, अकेलापन ,,,,
बहुत ही अच्छी प्रस्तुति।
ReplyDeleteWhere is my comment Anita Ji?
ReplyDeleteआपका कमेन्ट पता नहीं क्यों स्पैम में चला गया था.
Deletekoi baat nahi isliye to aapko suchit kiya :-)
Deleteइमरान अंसारी has left a new comment on your post "परम लक्ष्य को पाना है":
ReplyDeleteहाँ सत्य है सीढ़ी दर सीढ़ी ही बढ़ना होता है ।
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Posted by इमरान अंसारी to डायरी के पन्नों से at June 1, 2012 2:52 AM
रमाकांत जी, इमरान, सदाजी, धीरेन्द्र जी, आप सभी का स्वागत व आभार !
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