अप्रैल २००३
हमारा जीवन उसकी कृपा से ही हमारी मुक्ति का साधन बनता है. पहला कदम तो हमने यही
उठा लिया जब मानव जन्म मिला, दूसरा उसकी कृपा को अनुभव करना है. कृपा मिली तो
तीसरा कदम है उसको जाने की इच्छा का होना, उस एक इच्छा ने अन्य सभी छोटी कामनाओं
को अपने में समेट लिया क्यों कि उस एक को पाने से सब कुछ अपने आप मिल जाता है. उस
एक को पाने के लिये जब हम एक कदम बढाते हैं तो वह हजार कदमों से हमारी ओर बढ़ता है.
वह कैसे हरेक के हृदय में रहकर उसे निर्देशित करता है यह तो वही जाने पर वह करता
जरूर है, उसे पुकारो तो वह तत्क्षण हाजिर होता है और अपने को जनाता भी है. उससे आध्यात्मिक
सम्बन्ध बनाना है, देह बुद्धि से स्वयं को मुक्त करके आत्म बुद्धि की ओर ले जाना
है.
ईश्वर कृपा से जीवन हमारी मुक्ति का साधन बनता है.
ReplyDeleteMY RESENT POST,,,,,काव्यान्जलि ...: स्वागत गीत,,,,,
sundar bhaav ...
ReplyDeleteabhar..
यह सब तभी होगा जब अहं का विसर्जन हो।
ReplyDeleteदुःख ही अहं का भोजन है, इसे विसर्जित किये बिना भक्ति नहीं हो सकती
Deleteधीरेन्द्र जी व अनुपमा जी, आभार व स्वागत !
ReplyDeleteसच है ऐसे ही धीरे धीरे बढ़ना है ।
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