अप्रैल २००३
सदगुरु कहते हैं कि युग परिवर्तन चाहते हो तो स्वयं को बदलो, हिंसा का युग है, सही
है, भ्रष्टाचार बढ़ रहा है. पर न हम हिंसा को रोकने में समर्थ हैं न भ्रष्टाचार को,
सामर्थ्य है तो इतनी ही कि हमारे मन में हिंसा न हो, मनसा, वाचा, कर्मणा ऐसा कुछ
भी न हो जो किसी को दुःख दे, न तो हम खुद भ्रष्टाचार को प्रश्रय दें न अपने आचरण
में कोई ढील दें. एक-एक व्यक्ति स्वयं को दीप बनाता चले तो उजाला होने में देर
नहीं हो सकती. हमें खुद को बदलना है, यह जगत ऐसा क्यों है इसकी परवाह किये बिना.
कृष्ण को अपना आदर्श बनाना है जो सारे संकटों के मध्य भी विचलित नहीं होते. वह
हमें आवाहन देते हैं कि स्वयं को जानकर सन्तोष, पूर्णता, रस, आनंद व प्रेम का
अनुभव करें. इंसान की सारी दौड़ इसीलिये तो है कि इतना कुछ पा ले कि भीतर शांति
महसूस करे, उसे सुख मिले. तो इस दौड़ का अंत तभी हो जाता है जब हमें खुद में
विश्रांति पाने की कला आ जाती है. हम अपने घर लौटना सीख जाते हैं. जीने की इच्छा के कारण हमें तन मिला, फिर
कर्मों के बंधन के कारण विभिन्न जन्म मिले. स्वयं में स्थित होने पर पुराने कर्मों
के बीज नष्ट हो जाते हैं, और तब महाजीवन का आरम्भ होता है.
युग परिवर्तन चाहते हो तो स्वयं को बदलो,
ReplyDeleteजीवन अनमोल है ,सत्य वचन
परिवर्तन चाहते हो तो स्वयं को बदलना होगा,तभी परिवर्तन होगा,,,,,
ReplyDeleteबहुत अच्छी प्रस्तुति,,,
MY RECENT POST काव्यान्जलि ...: बहुत बहुत आभार ,,
गहन भाव लिए सुन्दर पोस्ट।
ReplyDeleteस्वयं में स्थित होने पर पुराने कर्मों के बीज नष्ट हो जाते हैं, और तब महाजीवन का आरम्भ होता है.
ReplyDeleteबहुत खूब कहा है .
रमाकांत जी, धीरेन्द्र जी, इमरान व वीरू भाई जी, आप सभी का स्वागत व आभार !
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