अप्रैल २००३
कोई भी आग्रह, चाहे वह भक्ति साधना के लिये ही हो, हमें बांधता है, इच्छा मुक्त
होने के साथ-साथ हमें आग्रह मुक्त भी होना है. सुबह समय पर उठने का क्रम कभी टूटना
नहीं चाहिए लेकिन कभी ऐसा हो भी गया तो अपने सहज रूप को छोड़ना नहीं है क्योंकि ‘स्वयं’
तो इन सबसे परे है, वह सदा जागृत है, मुक्त है. छोटी से छोटी बात भी साधक को अटका
न सके और बड़ी से बड़ी बात भी उसे बांध न सके. मन पानी की तरह बहता रहे, तभी निर्मल
बना रहेगा नहीं तो काई जमते देर नहीं लगती. साधक को तो इस बात का विशेष ध्यान रखना
चाहिए कि उसके किसी कार्य से किसी को दुःख न हो, उसके हृदय की शीतलता ही दूसरों को
मिले. उसे जगत में कुछ पाना शेष नहीं है. वह ईश्वर प्रेम के रूप में सर्वोपरि पहले
ही पा चुका है तब साधना की इच्छा भी क्यों अटकाए.
वह ईश्वर प्रेम के रूप में सर्वोपरि पहले ही पा चुका है तब साधना की इच्छा भी क्यों अटकाए!
ReplyDeleteप्रेरक !
स्वयं के विसर्जन के बाद किसी चीज़ की कामना बचती ही नहीं।
ReplyDeleteकोई भी आग्रह, चाहे वह भक्ति साधना के लिये ही हो, हमें बांधता है, इच्छा मुक्त होने के साथ-साथ हमें आग्रह मुक्त भी होना है.
ReplyDeleteप्रेरणादायी पंक्तियाँ
अपने सहज रूप को छोड़ना नहीं है क्योंकि ‘स्वयं’ तो इन सबसे परे है, वह सदा जागृत है, मुक्त है. छोटी से छोटी बात भी साधक को अटका न सके और बड़ी से बड़ी बात भी उसे बांध न सके. मन पानी की तरह बहता रहे, तभी निर्मल बना रहेगा
ReplyDeleteऐसे ही जाग्रत होना है....सुन्दर पोस्ट।
बहुत प्रेरक विचार....आभार
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