अप्रैल २००३
जब हम विवेक का आश्रय लेते हैं तो योग अपने आप सधने लगता है. पहले जीवन में
कर्मयोग आता है, क्योंकि हमारे कर्म तब स्वार्थ वश नहीं होते, सहज प्राप्त कर्म ही
करते हैं. और सिर्फ कर्म करने के लिये कर्म न कि फल की इच्छा के लिये. निष्काम भाव
से किया गया कर्म बांधता नहीं है. तब भक्ति का उदय होता है, क्योंकि हृदय यदि
शुद्ध हो तभी ईश्वर की कृपा का अनुभव होता है. भक्ति से हृदय में सहज ज्ञान होने
लगता है, कृष्ण ने कहा है कि वह अपने भक्त का बुद्धियोग करा देते हैं. ज्ञान हमें
निर्देशित करे तो मन नियंत्रण में रहेगा. हंस की नीर-क्षीर विवेकी दृष्टि हमें
तीनों तापों से बचा लेती है. तब असार को तज हम सार को ग्रहण करते हैं, व्यर्थ के
चिंतन से, व्यर्थ की चर्चा से, व्यर्थ के आहार से भी सहज ही बुद्धि बचा लेती है.
तब जीवन सरस व सरल होगा, कमियों को दूर करते हुए धैर्यवान और क्षमाशील बनने की ओर
सहज ही प्रवृत्ति होगी.
ज्ञानवर्धक आलेख ।.....आजकल जज़्बात पर नहीं आती आप अनीता जी।
ReplyDeleteनिष्काम कर्म योग सब दुखों से निजात दिलवा सकता है .निस्पृह भाव जीना सिखला सकता है .बढ़िया विचार कणिकाएं .
ReplyDeleteइमरान अंसारी has left a new comment on your post "जीवन सरस बनाये योग":
ReplyDeleteज्ञानवर्धक आलेख ।.....आजकल जज़्बात पर नहीं आती आप अनीता जी।
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Posted by इमरान अंसारी to डायरी के पन्नों से at June 21, 2012 2:53 AM
veerubhai has left a new comment on your post "जीवन सरस बनाये योग":
ReplyDeleteनिष्काम कर्म योग सब दुखों से निजात दिलवा सकता है .निस्पृह भाव जीना सिखला सकता है .बढ़िया विचार कणिकाएं .
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Posted by veerubhai to डायरी के पन्नों से at June 21, 2012 4:21 AM
ज्ञान हमें निर्देशित करे तो मन नियंत्रण में रहेगा.
ReplyDeleteMY RECENT POST:...काव्यान्जलि ...: यह स्वर्ण पंछी था कभी...
इमरान, वीरू भाई व धीरेन्द्र जी, बहुत बहुत अभिनन्दन व आभार !
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