अप्रैल २००३
गो का अर्थ है इन्द्रियाँ तो गोपी वही है जिसका अपनी इन्द्रियों पर नियंत्रण है,
मन भी तो छठी इंद्री है, तभी हम परमात्मा के साथ आनंद नृत्य में शामिल होने के
योग्य होते हैं. यदि कोई व्याधि सताए तो समझना चाहिए कि यम, नियम का पालन नहीं
हुआ, कहीं न कहीं मनमुखता हुई है. सत्संग हमें मन को स्थिर रखने के कितने उपाय
बताता है, संशयों और भ्रांतियों को दूर करता है. सत्य से जुडना सिखाता है. सत्य से
ही हमारी शोभा है, वही प्रेम है और प्रेम हमें मुक्त करता है. अंतर में रूहानी
संगीत व नृत्य का अनुभव कराता है. प्रातः काल जैसे हम स्नान करते हैं, वैसे ही सत्संग
का जल हमारे मन के स्नान के लिये है. संतों की वाणी वह उबटन है जो हमारे मन का मैल
रगड़–रगड़ कर स्वच्छ करता है. और वह फूल जैसा महकने लगता है. और तब वह उस ईश्वर को
अर्पित होने के काबिल बन ही जाता है. मनरूपी पुष्प जब उनके पास पहुंचता है तो
प्रभु उसे स्वीकार कर लेते हैं.
बहुत सुंदर लेख ...मन निर्मल करता हुआ ....!!
ReplyDeleteसत्संग हमें मन को स्थिर रखने के कितने उपाय बताता है, संशयों और भ्रांतियों को दूर करता है. सत्य से जुडना सिखाता है और प्रेम हमें मुक्त करता है,,,,,,,
ReplyDeleteRECENT POST ,,,,,पर याद छोड़ जायेगें,,,,, .
आज का मानव देहधारियों के प्रेम में मतवाला हो चुका है लेकिन एक परमात्मा के प्रेम में मतवाला होना ही बुद्धिमत्ता है।
ReplyDeleteआप सभी का स्वागत व आभार !
ReplyDeleteहाँ शब्द शब्द सही है ।
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