Wednesday, June 20, 2012

हर पल हमें सिखाता है


अप्रैल २००३ 
हर पल जीवन में बहुत कुछ घटता रहता है बाहर भी और भीतर भी. बाहर की प्रतिध्वनि भीतर तक सुनाई देती है और जब भीतर की प्रतिध्वनि बाहर तक भी सुनाई देने लगे तो समझना चाहिए कि अब वस्तुएँ अपना स्पष्ट आकार ले रही हैं. जो देह बुद्धि से मुक्त होना चाहता है वह ऐसी बातों का प्रभाव मन पर क्यों लेगा जो उसकी गलतियों की ओर इशारा करती हैं. अहं ही इसका मुख्य कारण है, हमारे अहं को चोट पहुंचती है जब कोई आलोचना करता है और प्रतिक्रिया हुई तो वह देहात्म बुद्धि के स्तर पर ही होगी क्योंकि आत्मा के स्तर पर कोई प्रतिक्रिया नहीं होती. अच्छा हो कि हम उस आलोचना को इसलिए स्वीकार करें कि वह सही है और हम उस त्रुटि से मुक्त होना चाहते हैं. सबसे महत्वपूर्ण बात है कि साधना में कभी कोई व्यवधान न आये चाहे कितनी बाधा आये या मन कितनी प्रतिक्रिया करे. क्योंकि ईश्वर हमें बेहतर बनाना चाहता है, साधक को उसके सामने जाने लायक बनना है, हम उसके बिना अधूरे हैं जब तक यह भाव दृढ़ नहीं हो पाता हम उसकी कृपा का अनुभव भी नहीं कर पाते न ही कृतज्ञता का भाव प्रकट करते हैं कि वह हमें जगा रहा है.

7 comments:

  1. मन कितनी प्रतिक्रिया करे. क्योंकि ईश्वर हमें बेहतर बनाना चाहता है,

    सुंदर संम्प्रेषण,,,,

    MY RECENT POST:...काव्यान्जलि ...: यह स्वर्ण पंछी था कभी...

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  2. सुन्दर.....सुन्दर.......अति सुन्दर

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  3. एक एक शब्द मोती सा जड़ा है कहा भी गया है निंदक नियरे राखिए, आँगन कुटी छवाय ,बिन पानी साबुन बिना ,निर्मल होत सुभाय ....कृपया यहाँ भी पधारें -


    ram ram bhai
    बुधवार, 20 जून 2012
    ये है मेरा इंडिया
    ये है मेरा इंडिया

    http://veerubhai1947.blogspot.in/

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  4. अहम से दूर रहना ...
    ईश्वर के करीब जाना ... बहुत ही सुंदरता से व्याख्या करतीं हैं आप ....

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  5. veerubhai has left a new comment on your post "हर पल हमें सिखाता है":

    एक एक शब्द मोती सा जड़ा है कहा भी गया है निंदक नियरे राखिए, आँगन कुटी छवाय ,बिन पानी साबुन बिना ,निर्मल होत सुभाय ....कृपया यहाँ भी पधारें -


    ram ram bhai
    बुधवार, 20 जून 2012
    ये है मेरा इंडिया
    ये है मेरा इंडिया

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  6. धीरेन्द्र जी, नासवा जी, वीरू भाईव राकेश जी आप सभी का स्वागत व बहुत बहुत आभार !

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  7. जब कोई आलोचना करता है और प्रतिक्रिया हुई तो वह देहात्म बुद्धि के स्तर पर ही होगी क्योंकि आत्मा के स्तर पर कोई प्रतिक्रिया नहीं होती. अच्छा हो कि हम उस आलोचना को इसलिए स्वीकार करें कि वह सही है और हम उस त्रुटि से मुक्त होना चाहते हैं.

    एक एक शब्द मोती जड़ा.....सुन्दर आलेख।

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