अप्रैल २००३
हर पल जीवन में बहुत कुछ घटता रहता है बाहर भी और भीतर भी. बाहर की प्रतिध्वनि
भीतर तक सुनाई देती है और जब भीतर की प्रतिध्वनि बाहर तक भी सुनाई देने लगे तो
समझना चाहिए कि अब वस्तुएँ अपना स्पष्ट आकार ले रही हैं. जो देह बुद्धि से मुक्त
होना चाहता है वह ऐसी बातों का प्रभाव मन पर क्यों लेगा जो उसकी गलतियों की ओर
इशारा करती हैं. अहं ही इसका मुख्य कारण है, हमारे अहं को चोट पहुंचती है जब कोई
आलोचना करता है और प्रतिक्रिया हुई तो वह देहात्म बुद्धि के स्तर पर ही होगी
क्योंकि आत्मा के स्तर पर कोई प्रतिक्रिया नहीं होती. अच्छा हो कि हम उस आलोचना को
इसलिए स्वीकार करें कि वह सही है और हम उस त्रुटि से मुक्त होना चाहते हैं. सबसे
महत्वपूर्ण बात है कि साधना में कभी कोई व्यवधान न आये चाहे कितनी बाधा आये या मन
कितनी प्रतिक्रिया करे. क्योंकि ईश्वर हमें बेहतर बनाना चाहता है, साधक को उसके
सामने जाने लायक बनना है, हम उसके बिना अधूरे हैं जब तक यह भाव दृढ़ नहीं हो पाता
हम उसकी कृपा का अनुभव भी नहीं कर पाते न ही कृतज्ञता का भाव प्रकट करते हैं कि वह
हमें जगा रहा है.
मन कितनी प्रतिक्रिया करे. क्योंकि ईश्वर हमें बेहतर बनाना चाहता है,
ReplyDeleteसुंदर संम्प्रेषण,,,,
MY RECENT POST:...काव्यान्जलि ...: यह स्वर्ण पंछी था कभी...
सुन्दर.....सुन्दर.......अति सुन्दर
ReplyDeleteएक एक शब्द मोती सा जड़ा है कहा भी गया है निंदक नियरे राखिए, आँगन कुटी छवाय ,बिन पानी साबुन बिना ,निर्मल होत सुभाय ....कृपया यहाँ भी पधारें -
ReplyDeleteram ram bhai
बुधवार, 20 जून 2012
ये है मेरा इंडिया
ये है मेरा इंडिया
http://veerubhai1947.blogspot.in/
अहम से दूर रहना ...
ReplyDeleteईश्वर के करीब जाना ... बहुत ही सुंदरता से व्याख्या करतीं हैं आप ....
veerubhai has left a new comment on your post "हर पल हमें सिखाता है":
ReplyDeleteएक एक शब्द मोती सा जड़ा है कहा भी गया है निंदक नियरे राखिए, आँगन कुटी छवाय ,बिन पानी साबुन बिना ,निर्मल होत सुभाय ....कृपया यहाँ भी पधारें -
ram ram bhai
बुधवार, 20 जून 2012
ये है मेरा इंडिया
ये है मेरा इंडिया
धीरेन्द्र जी, नासवा जी, वीरू भाईव राकेश जी आप सभी का स्वागत व बहुत बहुत आभार !
ReplyDeleteजब कोई आलोचना करता है और प्रतिक्रिया हुई तो वह देहात्म बुद्धि के स्तर पर ही होगी क्योंकि आत्मा के स्तर पर कोई प्रतिक्रिया नहीं होती. अच्छा हो कि हम उस आलोचना को इसलिए स्वीकार करें कि वह सही है और हम उस त्रुटि से मुक्त होना चाहते हैं.
ReplyDeleteएक एक शब्द मोती जड़ा.....सुन्दर आलेख।