Monday, June 11, 2012

एक वही तो डोल रहा है


अप्रैल २००३ 
जहाँ-जहाँ मन जाये उसकी गहराई में उसी एक की सत्ता को देखने का अभ्यास करें, संत ऐसा कहते हैं. हृदय में द्वेष बुद्धि न रहे तो सारी समस्याओं का समाधान अपने–आप मिलता है, हम जो भी कर्म करते हैं उस का बीज हमारे मन में रह जाता है और समय आने पर कर्म के अनुसार फल हमें भोगना पड़ता है. यदि सभी के साथ हमारी भावना में समता होगी, उनके हित की कामना होगी, तो हमारा व्यवहार शुद्द होगा, और अंतर एक शुभ्र, निर्मल आकाश की तरह उस ज्योति स्वरूप आत्मा के प्रकाश की झलक दिखायेगा. यह सम्पूर्ण जगत उसी की लीला है, खेल है, जिसके हम पात्र हैं, हम खेल में इतना उलझ जाते हैं कि घर जाने की सुध ही नहीं रहती, ध्यान वह विश्रांति है जिसे पाने के लिये हम घर जाते हैं, जहाँ प्रेम का पाथेय लिये प्रभु हमारी प्रतीक्षा रत हैं, जैसे माँ बच्चे को स्वच्छ करती है वैसी ही वह मन, बुद्धि पर छाई धूल को साफ करते हैं, अब खेलते समय भी उसकी याद बनी रहती है, जब एक बार पूर्ण मिल जाये तो अपूर्ण कोई क्यों चाहेगा, गंगा सामने हो तो पोखर को क्यों ताकेगा, फिर खेल भी उसकी पूजा बन जाता है और उसका सान्निध्य हमें हर पल प्राप्त होने लगता है. 

11 comments:

  1. जैसे माँ बच्चे को स्वच्छ करती है वैसी ही वह मन, बुद्धि पर छाई धूल को साफ करते हैं, अब खेलते समय भी उसकी याद बनी रहती है, जब एक बार पूर्ण मिल जाये तो अपूर्ण कोई क्यों चाहेगा, गंगा सामने हो तो पोखर को क्यों ताकेगा, फिर खेल भी उसकी पूजा बन जाता है और उसका सान्निध्य हमें हर पल प्राप्त होने लगता है.
    बहुत सात्विक स्पंदन पैदा करतें हैं ये विचार .शुक्रिया .

    ReplyDelete
  2. हाँ उसी का नूर .... कोई तो है जिसके आगे है आदमी मजबूर

    ReplyDelete
  3. जब एक बार पूर्ण मिल जाये तो अपूर्ण कोई क्यों चाहेगा,,,,,,
    बेहतरीन अभिव्यक्ति,,,,,,

    MY RECENT POST,,,,काव्यान्जलि ...: ब्याह रचाने के लिये,,,,,

    ReplyDelete
  4. और उसका सान्निध्य हमें हर पल प्राप्त होने लगता है.

    yakeenan ...
    saarthak aalekh ...

    abhar Anita ji ...

    ReplyDelete
  5. अनमोल वचन ..उसका सानिद्ध्य हमें हर पल प्राप्त होता है पर हम ही भूले होते हैं..

    ReplyDelete
  6. सुन्दर प्रस्तुति। सुन्दर विचार।आभार।

    ReplyDelete
  7. रश्मि जी, अनुपमा जी, धीरेन्द्र जी, व बाली जी आप सभी का आभार व स्वागत !

    ReplyDelete
  8. वही तो है.....हम तो मात्र परछाई ही है ।

    ReplyDelete
  9. शुद्ध व्यवहार ... ह्रदय में द्वेष न होना ... पूर्णतः पाने की दिशा का प्रयास है ...
    सार्थक चिंतन ...

    ReplyDelete